Thursday 6 June 2013

जिस प्रकार कई ब्राम्हण वंश -गोड़ प्रोभ्क्ता मटेले ,बसेडिया ,गिरदोनिया ,ढिमोले आदि अपने वंशज उपाधि (सर नेम ) से धी पुकारे जाते हैं । यदपि ये ब्राम्हण हैं । आपने नाम के आगे तिबारी शर्मा आदि उपाधि नहीं लगाते । इसी प्रकार खधार जो प्रचलित में खंगार ही लिखा जाता हैं यह वंश सूचक नाम हैं जाति तो क्षत्रिया हैं ।
           ओरिएंटल कोलेज हिन्दू युनीवर्सिटी बनारस के प्रिंसीपल श्रीमान महा महोपद्याय पंडित बालकृष्ण मिसने खंगार शब्द का शुद्ध अर्थ इस प्रकार बताया :-
खंगार =खंदार =खंड आरति (गृहाती ) इति खंदार : । खंदार =तलवार । आर =ग्रहण करना । तलवार ग्रहण करने वाला वीर योद्धा ।
         इसी वीरता सूचक अच्छा नाम होने के कारण पहिले के क्षत्रिय राजा लोग अपने लड़को का नाम खंगार रखते थे

नाहर राय पडिहार से नोघन राय हुए । जिनके खगेराव हुए खगेराव जिन्हें खंगार भी कहते है इनके पुर्बज पहले मंदिबर में रहकर जुनागड़ पर राज करते थे ।

      खेत सिंग जुनागड़ की गद्दी पर सम्बत १ ४ में बैठा और जुनागड़ में जसबंत सागर तालाब बनबाया और बाग़ लगबाया सम्बत १ १ ४ ०  में खेत सिंह ने गद कुदार जीत लिया । यही खेत सिंह असल में खंगार जाती का पुर्बज हुआ । इस का भाई कान्हपाल राजा रुद खंगार की रानी भटियानी गद जैसलमेर के रजा गड सी राव की बेटी का पुत्र था ।
   
   कान्ह पल ने कांदल सर पर राज किया खेत सिह जब जुनागड़ में राज करता था दिल्ली का  बादशाह प्रथ्वीराज  सिंह का शिकार करने जुनागड़ आया था यहाँ खेत सिंह की बीरता और पराक्रम देखकर बहुत प्रसन्न  हुए  और अपना सामंत बनाकर दिल्ली ले गया  । तब खेत सिंह का भाई जय सिंह जुनागड़ पर राज करने लगा
प्रथ्वीराज चोहान ने खेतसिंह को बन्दोबस्त के लिये अजमेर में रखा । जब प्रथ्वीराज ने सहोवा की चड़ाई की ज्ज्ब खेतसिंह भी साथ था । परमाल से युद्ध हुआ जिसमें खेतसिंह ने बहुत बीरता बतलाई । इस युद्ध में ऊदल मारा गया । आल्हा कहीं चला गया । महोवा को खेतसिंह ने जीत लिया इससे प्रसन्न होकर प्रथीराज  चोहान ने सम्वत १ १ ५ २  में महोवा पर खेतसिंह का राज तिलक कर दिया इस कारण सम्वत १ १ ५ ३ में खेतसिंह जूनागड़ छोड़कर कुटुम्ब सहित महोवा आकर रहने लगा ।
     
        सम्वत १ १ ५ ६ में बादशाह प्रथीराज चोहान को मुहम्मद गोरी ने बन्दी  बना लिया तब  खेतसिंह स्वतन्त्रहो गया और उसने अपने राज्य का और बिस्तार कर पूरे बुन्देलखण्ड  पर अपना राज्य स्थापित किया । बुन्देलखण्ड का प्राचीन नाम जैजाक युक्ति था जो बाद में जुभ्क्तितखंड कहलाया था । बुन्देला लोगों का राज्य होने को वह अब बुन्देलखण्ड कहलाते लगा हैं ।
        खेतसिंह का विवाह पहिले बघेलों में हुआ जिससे आसल जी ,नन्द्पाल जी ,विजय कुअरबाई हुई । विजय कुअरबाई का विवाह मदोन गढ़ के भीमसेन भदोरिया से हुआ था । खेतसिंह का दूसरा विवाह राजा ज्ञानपाल गहरबार की पुत्री राजल दे से हुआ । जिससे समर्थसिंह और नवलपाल हुए । कन्या जसकु बाई रामकुमार बाई भी हुई जो गढ़ गांग रौन में पिल्ल पिंजर खीची को व्याही थी जब गढ़ कुरार के गोढ़ लोगों से युद्ध हुआ और गढ़ कुरार खेतसिंह ने जौत लिया था उस समय आलन गोढ़ की केटी चम्पादे को दासी बनाकर रख लिया था । जिससे कौतलसिंह आदि दासी पुत्र हुए ।
       खेतसिंह ने महोवा छोड़कर गढ़ आमेरी का किला बनवाया वहां पर देवी का मन्दिर बनवाया खेतसिंह के पुत्र आसल ने गढ़ आमेरी का राज्य किया दुसरे लड़के नन्द्लाल ने गढ़ कुरार का राज्य किया ।

     खेतसिंह बड़ा बहादुर और देवी का भक्त था । किसी समय उस समय के मुसलमान बादशाह के कुछ चमत्कारिक बहादुरी बताई थी जिससे बादशाह प्रसन्न होकर खंगार क्षत्रियो का डाला माफ कर दिया था और कुछ आमदनी बढ़ा दी ।
 
       राजा नन्द्पाल की २ रानियों थीं । एक चोहान सांचोरी सोलंकी तोड़ा गवि की , जिससे भड़देव गंगदेव और मानदे कुंअर बाई हुई ।

      राजा नन्द्पाल चन्दून गढ़ में अपनी भनेजन विजय कुंअर बाई की पुत्री का विवाह करने गये थे । जिस समय विवाह हो रहा था दूडागढ़ वाले भी विवाह करने आये थे । इस अवसर को पाकर गोंड़ क्षत्री राज्य छुड़ाने की आसा से भदोंन गढ़ पर चढ़ आये । उस समय राजा नन्द्पाल ,नाडर जी , प्रतापसिंह जी भांवरो में बैठे थे । युद्ध हुआ । नादर सिंह , प्रताप सिंह और भनेज मारे गये तब से भदोरिया के विवाह में घर्म के मामा खंगारो के हाथ के हल्दी भरे पांच थप्पा लगाया जाता है और खंगार मामा को भोजन करा के पीछे आप भोजन करते और मेहर का सम्बन्ध भी अभी तक चला जाता है । यह पहले बता चुके हैं कि विजय कुंअर बाई भदोन गढ़ के भीमसेन भदोरिया को व्याही थी । इस कारण भदोरिया से सम्बन्ध था ।
     नन्द्पल के लड़के छत्रसाल की रानी गढ़ आमेर के कछवाहा राजपाल की बेटी को जिससे खूबसिंह , खीचीसिंह हुग्मनासिंह और कल्हनदेव हुए । छत्रसाल की बहिन मानदे कुंअर बाई थीं जो नरहिसिंह राठोर पीसागढ़ वाले को ब्याही थी । राजा नन्द्पाल के बाद चत्रशाल गढ़ कुमार की पर बैठा ।
     सम्वत  १ २ ० ५  में छत्रशाल के आजा खेतसिंह ने बुन्देला को कन्या रतन कुंअर बाई का धर्म विवाह किया था । जिसमे एक गाँव दहेज में दिया था । उपरान्त रतन कुमार बाई और मोहन पाल बुन्देला समय पाकर राजा छ्त्रशाल की शरण में आकर रहने लगे और सोहन पाल ये राजा शत्रशाल की नौकरी करने लगा । सात वर्ष उतमता से नौकरी की । जिस से प्रसन्न होकर शत्रशाल ने सम्वत १ २ ५ ० में बयाना के जागीर के १ २ गाव का पट्टा लिखकर दे दिया । पट्टा में लिखा कि एक दूसरे को धोखा न देगे । धोखा दे तो गाजन माता का काप हो और भगवान का दावागीर हो ।

      सोहनपाल (सहनपाल ) बुन्देला के एक कन्या थी । राजा चत्रशाल ने अपने लड़के का विवाह उस लड़की से करने का विचार प्रगट किया तो सोहनपाल ने स्वीकार कर लिया । परन्तु बाद को विचार किया कि सोहनपाल की छोटी जागीर है इससे अपने लड़के का सम्बन्ध करना ठीक नहीं । यह विचार कर सोहनपाल से कहा तुम्हारी जागीर छोटा है । हमारे भाई हमीरपुर वाले के लड़के को विवाह दो । इस पर बुन्देला जिद में आ गया और कहा हम उसकी अपनी कन्या न देकर आपके लड़के को विवाहेंगे राजा चत्रशाल ने कुछ उतर नहीं दिया । और लगुन भेज देने को कहा । बरात ब्योना पर चढ़ आई । चत्रशाल राजा ने बुन्देला की जिद तोड़ने के लिए हमीरपुर वाले लड़के को ही दूल्हा बनाकर ले गये थे ।

       सहनपाल बुन्देला यह जानकर बहुत क्रोधित हुआ चत्रशाल से कहा यह आपका लड़का नहीं है । लड़ाई होने लगी । मारग  राव , गंगेराव भाई , चन्दनसिंह काका और म्रगावती बाई और जो बरात में गये थे मारे गये और खूब घमसान युद्ध हुआ । ब्यौना से बुन्देल भाग गये और दस कोस तक खदेड़े गये । अमानसिंह और छतरसिंह बुन्देले मारे गये । पन्ना के रास्ते में बुन्देले फिर लड़ने लगे । खूब युद्ध हुआ । यहां टेहरी का खंगार राजा मारा गया । उसको रानी सती हा गई । फिर हमीरपुर आ गये ।

        पस्चात चत्रशाल के लड़के खूबसिंह ने गढ़ कुरार का राज्य किया । खूबसिंह के भाई खीचीसिंह ने टेहरी का राज्य किया और हुरमतसिंह ने हमीरपुर का राज्य किया ।

         खूबसिंह की दो रानियां थी । एक  रानी गढ़ विजोली को पंवार दे कुअर