Friday, 11 October 2013

Fort of GarhKudar

The Garh Kundar fort is located on a high hill, surrounded by picturesque hills and forests. Besides the main fort the remains of various ancient structures can be seen here. These isolated remains seem to quietly narrate the tale of their splendid past. There is an ancient decaying temple of Gajanan Maa (an epithet of Goddess Durga, considered to be ‘Kula Devi’ by Khangars), built by Maharaja Khet Singh Khangar. There is also a temple of ‘Giddha Vahini’ Devi located here.
The fort has a complex built around a large and spacious courtyard. A few rock and pillar inscriptions have been found in the fort. Among the rough and overgrown stones, boulders and fallen masonry have been found the beautiful pillars of sun and moon. The granite flooring of the fort is said to have been renovated by the Bundela kings during Mughal period.


Kundar came into prominence after a chief of Khangars Khet Singh decided to build his capital here, in 1180s AD. He captured the fortress of Jinagarh from Chandelas, which was located here, and established his own state. After his death his grandson Maharaja Khub Singh Khangar built a splendid fort in place of Jinagarh fortress and named it ‘Garh Kundar’.
Garh Kundar remained as the capital of Khangar kings till its capture by Mohammad Tughlaq’s army in 1347 A.D. Later it was handed over to Bundelas, who were feudatories of Mughals.
Besides the main fort the remains of various ancient structures can be seen here. These isolated remains seem to quietly narrate the tale of the splendid past of Khangar kshtriyas. It is in the large and spacious courtyard of the fort, princess Kesar De (daughter of lastKhangar king Maharaja Maan Singh) committed ‘jauhar’ (a ritual of voluntary immolation by jumping into a pool of fire, undertaken in medieval times by the kshatriya queens and princesses to save their honour from the invading enemy). A few rock and pillar inscriptions have been found in the fort, which tell us the story of Kesar De’s sacrifice.
The chief Minister of Madhya Pradesh announced a sum of rupees two crore forty three lakhs for the conservation of historical fort of Kundar during 3-day festival called "Virasat" held at the fort in December 2006.

As places go, Kundar is literally Orchha's ancestor. Abandoned way back in 1517 by the Bundelas, it is one of India's lost towns. With the Bundelas founding Orchha in 1531, Kundar stayed abandoned. The only thing they seem to have in common is that both were conceived from a defence viewpoint - Orchha as an island fort surrounded by thick vegetation and Kundar as a traditional hill fort with sweeping views of the countryside.
Despite the fact that both places were lived in by the Bundelas and should logically be culturally homogeneous, it is hard to find two places that are as different. While Orchha with its lavishly decorated palaces is celebratory and welcoming, Kundar's fort - Garh Kundar- is forbidding. Orchha's temples are splashed with the colour of flowers all year round in stark contrast to the uniformity of Garh Kundar's battlements and towers which almost seem to merge with the colour of the rocks. In Orchha, the noise generated either by or for tourists is never-ending while in Kundar, the silence is intense.


The silence in Garh Kundar has to be experienced to be believed. For those who live in the never ending cacophony of an urban concrete jungle, it may be hard to believe that such places exist. I spent several hours at Kundar and not once did I hear the sound of even an insect, forget any vehicular horn. From the hill on which the fort is perched, no human or animal sound was audible.
This silence has given birth to more legends, predictably, ghost stories. The locals (and there aren't too many of those) firmly believe the place to be haunted and do not venture in. There are no large villages or towns for miles around and barring the occasional fair at the nearby Giddavahini Devi temple, human presence is limited to a handful of huts located at a little distance from the base of the hill on which the fort is perched.
The 'ghost' stories have their origin in historical accounts. The Kundar fort was built by the Chandelas. Over time, governance of the fort passed into the hands of the Khangar dynasty who seem to have had a love-hate relationship with the Bundelas. Matters came to a head during a marriage between a Bundela princess and a Khangar prince at the fort.
After having participated in the celebrations and ensured that the Khangars were dead drunk, armed Bundelas crept into the fort in the middle of the night. What is believed to have followed is a massacre of the Khangars in a single night after which the fort passed into Bundela control. An alternate story credits the Tughlaks with the destruction of the Khangars and says that the Bundelas snatched the fort after the Tughlak forces had withdrawn.
Whatever the reason, Kundar has been silent for nearly 400 years. The fort has some strange aspects. Prime among them is that unlike many other abandoned places, this one has not been taken over by bats - that signature stench is inexplicably absent. Also, though the fort is in not in the best of conditions, it is unusually clean.

Thursday, 6 June 2013

जिस प्रकार कई ब्राम्हण वंश -गोड़ प्रोभ्क्ता मटेले ,बसेडिया ,गिरदोनिया ,ढिमोले आदि अपने वंशज उपाधि (सर नेम ) से धी पुकारे जाते हैं । यदपि ये ब्राम्हण हैं । आपने नाम के आगे तिबारी शर्मा आदि उपाधि नहीं लगाते । इसी प्रकार खधार जो प्रचलित में खंगार ही लिखा जाता हैं यह वंश सूचक नाम हैं जाति तो क्षत्रिया हैं ।
           ओरिएंटल कोलेज हिन्दू युनीवर्सिटी बनारस के प्रिंसीपल श्रीमान महा महोपद्याय पंडित बालकृष्ण मिसने खंगार शब्द का शुद्ध अर्थ इस प्रकार बताया :-
खंगार =खंदार =खंड आरति (गृहाती ) इति खंदार : । खंदार =तलवार । आर =ग्रहण करना । तलवार ग्रहण करने वाला वीर योद्धा ।
         इसी वीरता सूचक अच्छा नाम होने के कारण पहिले के क्षत्रिय राजा लोग अपने लड़को का नाम खंगार रखते थे

नाहर राय पडिहार से नोघन राय हुए । जिनके खगेराव हुए खगेराव जिन्हें खंगार भी कहते है इनके पुर्बज पहले मंदिबर में रहकर जुनागड़ पर राज करते थे ।

      खेत सिंग जुनागड़ की गद्दी पर सम्बत १ ४ में बैठा और जुनागड़ में जसबंत सागर तालाब बनबाया और बाग़ लगबाया सम्बत १ १ ४ ०  में खेत सिंह ने गद कुदार जीत लिया । यही खेत सिंह असल में खंगार जाती का पुर्बज हुआ । इस का भाई कान्हपाल राजा रुद खंगार की रानी भटियानी गद जैसलमेर के रजा गड सी राव की बेटी का पुत्र था ।
   
   कान्ह पल ने कांदल सर पर राज किया खेत सिह जब जुनागड़ में राज करता था दिल्ली का  बादशाह प्रथ्वीराज  सिंह का शिकार करने जुनागड़ आया था यहाँ खेत सिंह की बीरता और पराक्रम देखकर बहुत प्रसन्न  हुए  और अपना सामंत बनाकर दिल्ली ले गया  । तब खेत सिंह का भाई जय सिंह जुनागड़ पर राज करने लगा
प्रथ्वीराज चोहान ने खेतसिंह को बन्दोबस्त के लिये अजमेर में रखा । जब प्रथ्वीराज ने सहोवा की चड़ाई की ज्ज्ब खेतसिंह भी साथ था । परमाल से युद्ध हुआ जिसमें खेतसिंह ने बहुत बीरता बतलाई । इस युद्ध में ऊदल मारा गया । आल्हा कहीं चला गया । महोवा को खेतसिंह ने जीत लिया इससे प्रसन्न होकर प्रथीराज  चोहान ने सम्वत १ १ ५ २  में महोवा पर खेतसिंह का राज तिलक कर दिया इस कारण सम्वत १ १ ५ ३ में खेतसिंह जूनागड़ छोड़कर कुटुम्ब सहित महोवा आकर रहने लगा ।
     
        सम्वत १ १ ५ ६ में बादशाह प्रथीराज चोहान को मुहम्मद गोरी ने बन्दी  बना लिया तब  खेतसिंह स्वतन्त्रहो गया और उसने अपने राज्य का और बिस्तार कर पूरे बुन्देलखण्ड  पर अपना राज्य स्थापित किया । बुन्देलखण्ड का प्राचीन नाम जैजाक युक्ति था जो बाद में जुभ्क्तितखंड कहलाया था । बुन्देला लोगों का राज्य होने को वह अब बुन्देलखण्ड कहलाते लगा हैं ।
        खेतसिंह का विवाह पहिले बघेलों में हुआ जिससे आसल जी ,नन्द्पाल जी ,विजय कुअरबाई हुई । विजय कुअरबाई का विवाह मदोन गढ़ के भीमसेन भदोरिया से हुआ था । खेतसिंह का दूसरा विवाह राजा ज्ञानपाल गहरबार की पुत्री राजल दे से हुआ । जिससे समर्थसिंह और नवलपाल हुए । कन्या जसकु बाई रामकुमार बाई भी हुई जो गढ़ गांग रौन में पिल्ल पिंजर खीची को व्याही थी जब गढ़ कुरार के गोढ़ लोगों से युद्ध हुआ और गढ़ कुरार खेतसिंह ने जौत लिया था उस समय आलन गोढ़ की केटी चम्पादे को दासी बनाकर रख लिया था । जिससे कौतलसिंह आदि दासी पुत्र हुए ।
       खेतसिंह ने महोवा छोड़कर गढ़ आमेरी का किला बनवाया वहां पर देवी का मन्दिर बनवाया खेतसिंह के पुत्र आसल ने गढ़ आमेरी का राज्य किया दुसरे लड़के नन्द्लाल ने गढ़ कुरार का राज्य किया ।

     खेतसिंह बड़ा बहादुर और देवी का भक्त था । किसी समय उस समय के मुसलमान बादशाह के कुछ चमत्कारिक बहादुरी बताई थी जिससे बादशाह प्रसन्न होकर खंगार क्षत्रियो का डाला माफ कर दिया था और कुछ आमदनी बढ़ा दी ।
 
       राजा नन्द्पाल की २ रानियों थीं । एक चोहान सांचोरी सोलंकी तोड़ा गवि की , जिससे भड़देव गंगदेव और मानदे कुंअर बाई हुई ।

      राजा नन्द्पाल चन्दून गढ़ में अपनी भनेजन विजय कुंअर बाई की पुत्री का विवाह करने गये थे । जिस समय विवाह हो रहा था दूडागढ़ वाले भी विवाह करने आये थे । इस अवसर को पाकर गोंड़ क्षत्री राज्य छुड़ाने की आसा से भदोंन गढ़ पर चढ़ आये । उस समय राजा नन्द्पाल ,नाडर जी , प्रतापसिंह जी भांवरो में बैठे थे । युद्ध हुआ । नादर सिंह , प्रताप सिंह और भनेज मारे गये तब से भदोरिया के विवाह में घर्म के मामा खंगारो के हाथ के हल्दी भरे पांच थप्पा लगाया जाता है और खंगार मामा को भोजन करा के पीछे आप भोजन करते और मेहर का सम्बन्ध भी अभी तक चला जाता है । यह पहले बता चुके हैं कि विजय कुंअर बाई भदोन गढ़ के भीमसेन भदोरिया को व्याही थी । इस कारण भदोरिया से सम्बन्ध था ।
     नन्द्पल के लड़के छत्रसाल की रानी गढ़ आमेर के कछवाहा राजपाल की बेटी को जिससे खूबसिंह , खीचीसिंह हुग्मनासिंह और कल्हनदेव हुए । छत्रसाल की बहिन मानदे कुंअर बाई थीं जो नरहिसिंह राठोर पीसागढ़ वाले को ब्याही थी । राजा नन्द्पाल के बाद चत्रशाल गढ़ कुमार की पर बैठा ।
     सम्वत  १ २ ० ५  में छत्रशाल के आजा खेतसिंह ने बुन्देला को कन्या रतन कुंअर बाई का धर्म विवाह किया था । जिसमे एक गाँव दहेज में दिया था । उपरान्त रतन कुमार बाई और मोहन पाल बुन्देला समय पाकर राजा छ्त्रशाल की शरण में आकर रहने लगे और सोहन पाल ये राजा शत्रशाल की नौकरी करने लगा । सात वर्ष उतमता से नौकरी की । जिस से प्रसन्न होकर शत्रशाल ने सम्वत १ २ ५ ० में बयाना के जागीर के १ २ गाव का पट्टा लिखकर दे दिया । पट्टा में लिखा कि एक दूसरे को धोखा न देगे । धोखा दे तो गाजन माता का काप हो और भगवान का दावागीर हो ।

      सोहनपाल (सहनपाल ) बुन्देला के एक कन्या थी । राजा चत्रशाल ने अपने लड़के का विवाह उस लड़की से करने का विचार प्रगट किया तो सोहनपाल ने स्वीकार कर लिया । परन्तु बाद को विचार किया कि सोहनपाल की छोटी जागीर है इससे अपने लड़के का सम्बन्ध करना ठीक नहीं । यह विचार कर सोहनपाल से कहा तुम्हारी जागीर छोटा है । हमारे भाई हमीरपुर वाले के लड़के को विवाह दो । इस पर बुन्देला जिद में आ गया और कहा हम उसकी अपनी कन्या न देकर आपके लड़के को विवाहेंगे राजा चत्रशाल ने कुछ उतर नहीं दिया । और लगुन भेज देने को कहा । बरात ब्योना पर चढ़ आई । चत्रशाल राजा ने बुन्देला की जिद तोड़ने के लिए हमीरपुर वाले लड़के को ही दूल्हा बनाकर ले गये थे ।

       सहनपाल बुन्देला यह जानकर बहुत क्रोधित हुआ चत्रशाल से कहा यह आपका लड़का नहीं है । लड़ाई होने लगी । मारग  राव , गंगेराव भाई , चन्दनसिंह काका और म्रगावती बाई और जो बरात में गये थे मारे गये और खूब घमसान युद्ध हुआ । ब्यौना से बुन्देल भाग गये और दस कोस तक खदेड़े गये । अमानसिंह और छतरसिंह बुन्देले मारे गये । पन्ना के रास्ते में बुन्देले फिर लड़ने लगे । खूब युद्ध हुआ । यहां टेहरी का खंगार राजा मारा गया । उसको रानी सती हा गई । फिर हमीरपुर आ गये ।

        पस्चात चत्रशाल के लड़के खूबसिंह ने गढ़ कुरार का राज्य किया । खूबसिंह के भाई खीचीसिंह ने टेहरी का राज्य किया और हुरमतसिंह ने हमीरपुर का राज्य किया ।

         खूबसिंह की दो रानियां थी । एक  रानी गढ़ विजोली को पंवार दे कुअर